वह कहता,’...............।‘ सब हाथ उठाकर उसका समर्थन करते।
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उन सबकी यानी उसकी प्रगति की राह में एक खाई थी। मंजिल पर पहुंचने के लिए उस खाई को पाटना जरूरी था।
उसने कहा, ‘यह खाई हमारी प्रगति में बाधा नहीं बन सकती। हमारी हिम्मत और दृढ़ निश्चय के आगे यह टिक नहीं सकेगी। साथियो, देखते क्या हो आगे बढ़ो।‘
देखते ही देखते वे सब उस खाई में समा गए।
उसने मुस्कराकर एक नजर लाशों से पटी खाई पर डाली और फिर उन पर चलते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया।
0 राजेश उत्साही
(प्रज्ञा,साहित्यिक संस्था , रोहतक द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 1980-81 में पुरस्कृत । प्रज्ञा द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘स्वरों का आक्रोश’ में संकलित ।)