पंद्रह अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस। हमारे घर में इसे दो और वजहों से याद किया जाता है। पहली वजह यह है कि इसी दिन 1977 में मेरे छोटे भाई सुनील का चौदह साल की अल्पायु में ही निधन हो गया था। कई वर्षों तक जब जब पंद्रह अगस्त आता, सब तरफ उल्लास और उत्सव का माहौल होता, लेकिन हमारे घर में उदासी छा जाती। कई बार ऐसा होता कि रक्षाबंधन का त्यौहार भी उसके आसपास ही आता। वह भी हमारी उदासी दूर नहीं कर पाता।
लेकिन फिर 1991 में यह उदासी जैसे सदा के लिए दूर हो गई। पंद्रह अगस्त की ही भोर में उत्सव का आगमन हुआ। उत्सव यानी हमारा छोटा बेटा। हालांकि उसके जन्म के पहले तक हमें नहीं पता था कि पैदा होने वाला शिशु बेटा होगा या बेटी। लेकिन हमने नाम पहले ही सोच रखे थे। बेटा होगा तो उत्सव, बेटी होगी तो नेहा। हमारा पहला बच्चा बेटा था, लेकिन हम उसका नाम उत्सव नहीं रख सके, उसका नाम कबीर है।
यह संयोग ही है कि उस साल भी 14 अगस्त को नागपंचमी का त्यौहार था। नागपंचमी की रात बीत रही थी और पंद्रह अगस्त की तारीख शुरू हो रही थी। उन दिनों हम भोपाल के साढ़े छह नम्बर बस स्टाप के पास अंकुर कालोनी में रहते थे। मेरी पत्नी नीमा ने प्रसव वेदना महसूस की और कहा कि अस्पताल ले चलो। रात के एक बज रहे थे। मेरे पास तब सायकिल हुआ करती थी। सायकिल पर अस्पताल ले जाना संभव नहीं था। मैं सायकिल लेकर आटो ढूंढने निकला।
आटो नहीं मिला। आखिरकार मैं अपने मित्र और एकलव्य के सहयोगी मनोहर नोतानी के घर पहुंचा। उनके पास स्कूटर हुआ करता था। उन्हें जगाया। वे तुरंत ही मेरे साथ आ गए। वे नीमा को स्कूटर पर बिठाकर अस्पताल पहुंचे। मैं सायकिल पर कबीर को लेकर। सुबह लगभग साढ़े चार बजे उत्सव ने दुनिया में प्रवेश किया। सबसे पहले उसे बड़े भाई कबीर ने अपनी गोद में खिलाया। दादी-दादा होशंगाबाद में थे। उन्हें खबर हुई तो वे पहली गाड़ी से भोपाल पहुंचे। इस तरह हमारे घर में एक बार फिर उत्सव और उल्लास का माहौल बन गया। सबने महसूस किया जैसे सुनील लौट आया।
आटो नहीं मिला। आखिरकार मैं अपने मित्र और एकलव्य के सहयोगी मनोहर नोतानी के घर पहुंचा। उनके पास स्कूटर हुआ करता था। उन्हें जगाया। वे तुरंत ही मेरे साथ आ गए। वे नीमा को स्कूटर पर बिठाकर अस्पताल पहुंचे। मैं सायकिल पर कबीर को लेकर। सुबह लगभग साढ़े चार बजे उत्सव ने दुनिया में प्रवेश किया। सबसे पहले उसे बड़े भाई कबीर ने अपनी गोद में खिलाया। दादी-दादा होशंगाबाद में थे। उन्हें खबर हुई तो वे पहली गाड़ी से भोपाल पहुंचे। इस तरह हमारे घर में एक बार फिर उत्सव और उल्लास का माहौल बन गया। सबने महसूस किया जैसे सुनील लौट आया।
उत्सव बीसवें में प्रवेश कर रहा है। वह एक साल देर से स्कूल गया। इसलिए नहीं कि जाना नहीं चाहता था, इसलिए कि उसे स्कूल पसंद नहीं आया। जिस स्कूल में था, वहां एक शिक्षिका ने पंद्रहवें दिन उसके कान कुछ इस तरह खींचे कि उसने विद्रोह कर दिया। उसने तय किया कि वह इस स्कूल में तो कतई नहीं जाएगा। फिर उसे भोपाल के एक अन्य जाने-माने स्कूल में हिन्दी माध्यम में भर्ती किया। स्कूल में अंग्रेजी माध्यम भी था। हफ्ते भर में ही यह समझ आया कि स्कूल हिन्दी माध्यम के बच्चों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है। उनके लिए दोयम दर्जे की व्यवस्थाएं थीं। इस बार हमारा मन गवारा नहीं किया। शिक्षा सत्र इतना आगे बढ़ चुका था कि तीसरा स्कूल नहीं खोजा जा सकता था। तय किया वह अब इस साल घर में ही रहे।
अगले साल उसे एक बहुत ही छोटे स्कूल में भर्ती किया। उत्सव ने इस स्कूल में चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। फिर एक बड़े स्कूल में गया, जहां से पिछले साल ही उसने बारहवीं की परीक्षा पास की है।
दसवीं की परीक्षा देने तक, हमें पता नहीं था कि वह आगे क्या करेगा। लेकिन परीक्षा खत्म होने के चौथे दिन ही उसने ऐलान कर दिया कि वह आगे की पढ़ाई गणित विषय लेकर करना चाहता है़। वह चाहता है कि किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में जाए कम्प्यूटर साइंस में पढ़ाई के लिए। जाहिर है कि इसके लिए उसे अभी से तैयारी करनी होगी। यानी स्कूल के साथ कोचिंग। हमारी सोच यह रही है कि बच्चों को किसी अनावश्यक तनाव में न डालें। मैंने उससे कहा तुम जानते हो न कि यहां गलाकाट प्रतियोगिता है। बहुत तनाव और दबाव है। उसने केवल एक ही बात कही आपके लिए यह करवाना संभव है या नहीं यह बताइए। बाकी मुझ पर छोड़ दीजिए।
जाहिर है मैं या हम उसके आड़े नहीं आना चाहते थे। उसने दो साल स्कूल की पढ़ाई के साथ कोचिंग भी की। बारहवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर ली। इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में उसे जो रैंक मिली उसके आधार पर मनपसंद कालेज नहीं मिले। उसने निर्णय किया कि इस साल फिर से आईआईटी तथा उसके समकक्ष अन्य संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करेगा। वह तैयारी कर रहा है। उसकी प्रतिबद्धता देखकर यह संतोष तो है कि वह अपने लक्ष्य को लेकर गंभीर है। एक तरह का जुझारूपन उसमें है। जब वह छठवीं में था तो उसे टूयूबरक्लोमा (एक तरह का तपेदिक) की शिकायत हो गई थी। डेढ़ साल उसे नियमित रूप से दवाईयां खानी पड़ी। हर रोज वह बिना किसी ना-नुकर के तीन-तीन गोलियां खाता था।
खेलने का उसे बहुत शौक नहीं रहा। जब छोटा था तो दशहरे पर वह खुद रावण बनाकर जलाया करता था। कहानी की किताबें पढ़ने में उसकी रुचि रही है। एक बार मुझे पुरानी किताबों की दुकान से ‘पराग’ पत्रिका के पचास साठ अंक मिल गए थे। उत्सव जिसे हम प्यार से मोलू कहते हैं इन अंकों को लगभग पांच-छह साल तक पढ़ता रहा। खाना खाते समय कम से कम एक अंक वह साथ में रखता था। चकमक तो वह पढ़ता ही था। चौथी कक्षा में उसने अपने स्कूल के एक कार्यक्रम में एक नाटक में सूत्रधार की भूमिका निभाई थी। नाटक भोपाल के रवीन्द्र भवन के मंच पर खेला गया था। उसे इस भूमिका के लिए भोपाल की महापौर द्धारा पुरस्कृत किया गया था। हमारे घर में कम्प्यूटर का आगमन उसके कहने पर ही हुआ। उत्सव को तरीके के और अच्छे कपड़े पहनने का शौक है। पर कभी भी उसने ऐसी कोई मांग नहीं की जिसे हम पूरा नहीं कर सकें। उसे भोपाल बहुत पसंद है। उसका वश चले तो वह भोपाल छोड़कर कहीं और नहीं जाना चाहता। मई में चार दिन के लिए वह बंगलौर आया था। जब वहां से लौटा तो फोन पर उसने कहा कि अपना तो भोपाल ही भला।
कबीर की ही तरह उसने भी कुछ जिम्मेदारियां उठा लीं हैं। कम से कम खुद को संभालने की जिम्मेदारी तो वह उठा ही रहा है। कई बार लगता है जैसे वह वक्त से पहले ही परिपक्व हो गया है। शायद यह परिस्थितियों का तकाजा है।
मुकेश का गाया गीत -किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार,किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते तेरे दिल में हो प्यार, जीना इसी का नाम है- भी बहुत पसंद है।
न हो कुछ भी
सिर्फ सपना हो
तो भी हो सकती है शुरुआत
और वह एक शुरुआत ही तो है
कि वहां एक सपना है।
उत्सव बेटे जन्मदिन ही नहीं तुम्हें हर दिन मुबारक हो।
उत्सव की कुछ और तस्वीरें निबोली पर देख सकते हैं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteन हो कुछ भी
ReplyDeleteसिर्फ सपना हो
तो भी हो सकती है शुरुआत
और वह एक शुरुआत ही तो है
कि वहां एक सपना है।
जिसकी आँखों में जिंदगी का कोई सपना ही नहीं वह भला किस उद्देश्य से जी सकता है...सपना ही तो जिन्हें हम पूरी तन्मयता से पूर्ण करने में लगे रहते हैं.... बहुत सुन्दर पारिवारिक आलेख प्रस्तुति के लिए बधाई
उत्सव को जन्मदिन की हार्दिक बधाई के साथ आप सभी को स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बहुत बधाई
utsav ko aasheesh v shubhkamnaen.....is bhavpoorn post ke liye aapko sadhuwad....
ReplyDeleteto fir aap sampadan kiska karte hain
ReplyDeleteबहुत अच्छा राजेश, बेटे को इस तरह प्रोत्साहित करने के लिये तुम्हें मेरा आशीष. नीमा जी को भी.
ReplyDeleteस्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteउत्सव बेटे को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं .....
ReplyDeleteनीमा जी का त्याग ....यह बेटा उनकी हर आरजू पूरी करे दुआ है ......
बच्चे संस्कारी हों तो हर माता-पिता को गर्व होता है ...
उत्सव को जन्मदिन की शुभकामनाएँ,
ReplyDeleteऔर आपको उत्सव की,
सस्नेह।
संयोग और वियोग को समेटे यह पोस्ट बहुत अच्छी रही!
ReplyDeleteपुत्र को प्रोत्साहित करने के लिए एक बेमिसाल मिसाल। राजेश भाई आप यूं ही उत्साही नहीं हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteमोलू को जन्मदिन पर शुभकामनाएं.. आपको बधाई और आभार ये सब हम से बांटने के लिए.. सच में दिल खुश हो गया पढ़ कर.. इस बार उसे मनचाहा संस्थान मिले उसके लिए शुभकामनाएं..
ReplyDeleteउत्सव के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteउत्सव बेटे जन्मदिन ही नहीं तुम्हें हर दिन मुबारक हो।
ReplyDelete.... बेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति ... हमारी ओर से भी उत्सव के सुनहरे भविष्य के लिये शुभकामनाएं !!!
utsav ko janmdiwas ki shubhkaamnayein.......
ReplyDeletesir apne bete par ye pyaar humesha banaye rakhiyega.......
सर्वप्रथम...उत्सव को जन्मदिन की ढेरों बधाईयाँ..देर से दे रही हूँ ..क्षमाप्रार्थी हूँ
ReplyDeleteउत्सव बेटे के मन की मुराद पूरी हो..यही प्रार्थना है...
बहुत सुन्दर प्रविष्ठी...
उत्सव के जन्मदिन पर ढेरों बधाइयाँ।
ReplyDeleteउसके उज्जवल भविष्य के लिये शुभकामनायें।
बाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
आपकी सादगी बहुत अच्छी लगती है!
आपके घर में सदा उत्सव रहे!
आशीष, फिल्लौर
आपके बेटे को बधाईयाँ। व्यक्तित्व के विकास की कथा बड़े सुन्दर ढंग से बता गये आप।
ReplyDeleteकुछ देर से ही सही उत्सव को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें . संतान अगर संस्कारी और ज़िम्मेदार हो तो आज के युग में किसी वरदान से कम नहीं.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteutsav ko meri or se janmdin ke shubhkaamna... uske saarthak bhavishya ke liye bhi kaamna karta hoo
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! ब्लॉग के परिचय में मैंने जो पंक्तियाँ लिखी हैं उसके बारे में आपने बहुत ही अच्छा सुझाव दिया है की उसे इस तरह से लिखने के लिए "फूल ने फूल को चुरा लिया "! पर अभी तो उसे बदलना मुश्किल है क्यूंकि जब मैंने ब्लॉग बनाया था तब background कलर सेलेक्ट करके उसपर लिखा था और अब अगर कोशिश करूँ तो हो सकता है की पूरा डिलीट हो जाए!
ReplyDeleteaapne bahut hi sahi raah dikhai hai sir,
ReplyDeleteaur bhi xhetron me aage aane wali yuva peedhi tatha unke abhibhavak ko bhi. kabeer ko meri taraf aal di best kahiyega.
poonam