बंगलौर आकर मैंने अपने ब्लाग गुल्लक को सक्रिय करने की कोशिश की। गुल्लक के मार्फत ही एक नए दोस्त मिले दिनेश श्रीनेत। यहां वनइंडिया के हिन्दी पोर्टल के संपादक थे। थे इसलिए कह रहा हूं कि इस महीने की पहली तारीख को ही उन्होंने कानपुर में जागरण में नई जिम्मेदारी संभाल ली है। वहां भी उन्हें हिन्दी पोर्टल पर ही काम करना है। दिनेश ने ही मुझे इस बात के लिए उकसाया कि मैं वनइंडिया के लिए शिक्षा के मुद्दों पर जनसंवाद में लिखूं। मैंने लिखा और अब भी लिख रहा हूं।
एक दिन दिनेश अपने घर ले गए थे। उनके घर की दिलचस्प यात्रा के बारे में मैंने अपने दूसरे ब्लाग यायावरी में लिखा है। वहां उनकी किताबों की अलमारी में मुझे ऐसी बहुत सी किताबें दिखीं,जिन्हें मैं पढ़ना चाहता था। एक किताब मैं साथ ले आया। यह है बीसवीं सदी के महान क्रांतिकारी तुर्की कवि नाजिम हिकमत की कविताओं का हिंदी अनुवाद ‘देखेंगे उजले दिन’। कविताओं का चयन और अनुवाद सुरेश सलिल जी ने किया है। यह संग्रह 2003 में मेधा बुक्स से प्रकाशित हुआ है। संग्रह में तिरपन कविताओं के साथ नाजिम हिकमत का विस्तृत परिचय भी है।