मेरी कहानी
उस संगमरमरी पत्थर की कहानी है
लोग खूबसूरत कहने के बावजूद
जिसे पत्थर कहते हैं।
उस काली चटटान की कहानी है
सख्त होने के बावजूद
कोमल पौधे जिसके सीने पर अपनी जड़ें जमाए रहते हैं।
कविता की ये पंक्तियां शरद बिल्लौरे की कविता मेरी कहानी की हैं। शरद अब हमारे बीच में नहीं हैं। 19 अक्टूबर 1955 को रहटगांव जिला होशंगाबाद,मप्र में जन्में शरद का 3 मई 1980 को दुखद निधन हो गया था। मैं 1982 में प्रगतिशील लेखक संघ की होशंगाबाद इकाई का सचिव था। शरद बिल्लौरे का कविता संग्रह ‘तय तो यही हुआ था’ प्रगतिशील लेखक संघ ने ही प्रकाशित किया था। सचमुच शरद भाई की कविताएं इतनी सहज और सरल थीं कि लगता जैसे वे पढ़ने वाले ने स्वयं लिखीं हों। मैं भी उनसे बहुत प्रभावित था। इस हद तक कि उनके इस संग्रह की कविताओं को आधार बनाकर मैंने श्रद्धांजलि स्वरूप एक कविता लिखी थी ‘तुम मुझ में जिंदा हो।‘ जब हरदा में प्रगतिशील लेखक संघ का संभागीय सम्मेलन हुआ तो उसमें होशंगाबाद के उभरते हुए कवियों की कविताओं का एक सायक्लोस्टाइल संग्रह होशंगाबाद इकाई की ओर से जारी किया था। इसका संग्रह का नाम शरद भाई के संग्रह की अंतिम कविता ‘तुम मुझे उगने तो दो’ के नाम पर रखा था। पिछले दिनों शरद कोकास के ब्लाग पर शरद बिल्लौर का जिक्र देखकर उनकी कविताओं की बहुत याद आई। खासकर यात्रा पर लिखी गई कविताओं की। मैं आज खुद जब अपने शहर भोपाल से बाहर बंगलौर में हूं,तब मुझे इन कविताओं को बार-बार पढ़ने का मन हुआ।
उस संगमरमरी पत्थर की कहानी है
लोग खूबसूरत कहने के बावजूद
जिसे पत्थर कहते हैं।
उस काली चटटान की कहानी है
सख्त होने के बावजूद
कोमल पौधे जिसके सीने पर अपनी जड़ें जमाए रहते हैं।
कविता की ये पंक्तियां शरद बिल्लौरे की कविता मेरी कहानी की हैं। शरद अब हमारे बीच में नहीं हैं। 19 अक्टूबर 1955 को रहटगांव जिला होशंगाबाद,मप्र में जन्में शरद का 3 मई 1980 को दुखद निधन हो गया था। मैं 1982 में प्रगतिशील लेखक संघ की होशंगाबाद इकाई का सचिव था। शरद बिल्लौरे का कविता संग्रह ‘तय तो यही हुआ था’ प्रगतिशील लेखक संघ ने ही प्रकाशित किया था। सचमुच शरद भाई की कविताएं इतनी सहज और सरल थीं कि लगता जैसे वे पढ़ने वाले ने स्वयं लिखीं हों। मैं भी उनसे बहुत प्रभावित था। इस हद तक कि उनके इस संग्रह की कविताओं को आधार बनाकर मैंने श्रद्धांजलि स्वरूप एक कविता लिखी थी ‘तुम मुझ में जिंदा हो।‘ जब हरदा में प्रगतिशील लेखक संघ का संभागीय सम्मेलन हुआ तो उसमें होशंगाबाद के उभरते हुए कवियों की कविताओं का एक सायक्लोस्टाइल संग्रह होशंगाबाद इकाई की ओर से जारी किया था। इसका संग्रह का नाम शरद भाई के संग्रह की अंतिम कविता ‘तुम मुझे उगने तो दो’ के नाम पर रखा था। पिछले दिनों शरद कोकास के ब्लाग पर शरद बिल्लौर का जिक्र देखकर उनकी कविताओं की बहुत याद आई। खासकर यात्रा पर लिखी गई कविताओं की। मैं आज खुद जब अपने शहर भोपाल से बाहर बंगलौर में हूं,तब मुझे इन कविताओं को बार-बार पढ़ने का मन हुआ।