‘टिकट दिखाइए।’ एक आवाज गूंजी।
दूसरे ही क्षण रामपुरी सामने था। यह पहले का टिकट था। वह आगे कुछ करता, इससे पहले ही दूसरे ने तुरंत चाकू छीनकर जेब के हवाले किया और रसीद किए दो हाथ।
टिकट चेकर की आंखों में कृतज्ञता झलक आई। दूसरे ने एक नजर पहले को देखा और फिर टिकट चेकर को दूसरे दरवाजे की ओर ले जाकर धीरे से कहा, ‘बाबूजी,टिकट तो मेरे पास भी नहीं है।’
0 राजेश उत्साही
बम्बई यानी आज की मुम्बई से रामावतार चेतन के संपादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका रंग-चकल्लस के नवम्बर-दिसम्बर,1981 अंक में प्रकाशित ।
एगो कवि सम्मेलन में आयोजक एगो पहलवान थे. सुरुए में आकर बता दिए कि कोई भी अस्लील कबिता सुनाएगा तो उसको मंच से उठाकर फेंक दिया जाएगा.. सब कबि के बाद ऊ स्वयम् कबिता पाठ करने आए त स्रोता गन के बीच से एक स्वर में आवाज आया कि पहलवान जी आप त खुद ही कूद जाइए मंच से...
ReplyDeleteरेलवे में इस तरह का घटना आम है!! मगर अच्छा लगा पढकर!!!
दूसरा चाकू 'अहसान' का.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लघुकथा
आपके प्रोफाइल के ऊपर लिखा है "थोड़ा लिखा,बहुत समझना"!
ReplyDeleteयह इस लघुकथा में कूट-कूट कर भरा है।
यदि हम गलती करके स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं तो समय हमारी मूर्खता पर हँसा करेगा।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी
अच्छी लघुकथा है ... व्यंग्य भी है और हकिक़त भी ...
ReplyDeleteउत्साही जी
ReplyDeleteबहुत अच्छी लघुकथा. यहां तो एहसान भी रामपुरी से कम नहीं निकला.
बहुत अन्तर और कुछ भी नहीं।
ReplyDeleteइस लघुकथा में एक बहुत बड़ी कथा छिपी हुई है।...पसंद आई।
ReplyDeleteकथा पसंद आई।
ReplyDeleteबढ़िया कथा ...
ReplyDeletewaah!acchi laghukatha!
ReplyDeletesundar ..!
ReplyDeleteहा..हा..हा.
ReplyDeleteइस लघुकथा के माध्यम से आपने ऐसे दो चरित्रों पर प्रकाश डाला है जिनसे सामना अक्सर हो ही जाता है।
..बहुत खूब।
कमाल की रचना है राजेश भाई ! शुभकामनायें
ReplyDeleteदोनों बातें समान भी हैं और अलग भी..... कुछ ही शब्दों में
ReplyDeleteहकीकत कह डाली आपने....
ज़िंदगी के लम्बे सफ़र में
ReplyDeleteअलग-अलग मोड़ पर
अचानक मिल जाने वाले
पात्रों का सार्थक चित्रण ...
बहुत अच्छी लघु-कथा .
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteRAJESH JI,
ReplyDeleteCHHOTISI GHATANA KO KAVYA / KATHA BANANA KOI AAPSE SIKHE.
UDAY TAMHANEY.
BHOPAL.
9200184289
शानदार
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