वह कहता,’...............।‘ सब हाथ उठाकर उसका समर्थन करते।
***
उन सबकी यानी उसकी प्रगति की राह में एक खाई थी। मंजिल पर पहुंचने के लिए उस खाई को पाटना जरूरी था।
उसने कहा, ‘यह खाई हमारी प्रगति में बाधा नहीं बन सकती। हमारी हिम्मत और दृढ़ निश्चय के आगे यह टिक नहीं सकेगी। साथियो, देखते क्या हो आगे बढ़ो।‘
देखते ही देखते वे सब उस खाई में समा गए।
उसने मुस्कराकर एक नजर लाशों से पटी खाई पर डाली और फिर उन पर चलते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया।
0 राजेश उत्साही
(प्रज्ञा,साहित्यिक संस्था , रोहतक द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 1980-81 में पुरस्कृत । प्रज्ञा द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘स्वरों का आक्रोश’ में संकलित ।)
आपकी यह लघुकथा जैसा कि बताया है १९८०-८१ की है.. लेकिन आज भी उतनी ही प्रसन्गिक है... या कहिये अधिक प्रासन्गिक है... सफ़लता के राह मे खाई ऐसे ही पाटी जाती है... आज भी.. एक काल्जयी रचना समय की सीमा से परे होती है.. और आपकी यह लघुकथा ने २० वर्षो मे अपनी प्रसन्गिक्अता नही खोइ है... बधाई !
ReplyDeleteएक बार मेरे बॉस ने जब मेरी पीठ थपथपाई थी तो मैंने कहा था कि मुझे पीठ थपथपाने वालों से डर लगता है कि कहीं वो छुरा भोंकने की जगह तो नहीं तलाश रहे!! ब्रूटसों की कमी नहींहै बड़े भाई! एक ढूँढो हज़ार मिलते हैं... यह लघुकथा टिप्पणियों से परे सोचने की बात है कि कभी ऊपर पहुँचो तो देख लो कि तुम्हारे क़दमों के नीचे किसी की लाश तो नही! बड़े भाई, आभार!
ReplyDeleteबिना लाशों पर पैर रख कर भी ऊंचा उठा जा सकता है पर क्या लोग समझते नहीं? दरअसल ऐसा है नहीं। लोग जानते हैं पर मानते नहीं। कभी स्थितियां तो कभी महत्वाकांक्षाएं उसे ऐसे रास्ते पर ले जाकर खड़ा कर देते हैं जहां से फिर लौटा नहीं जा सकता।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
lahron se darker nauka paar nahin hoti ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और शानदार लघुकथा प्रस्तुत किया है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर समर्थकों की की बलि से रक्तरंजित है विश्व का इतिहास।
ReplyDeleteबहुत ही ज़बरदस्त लघुकथा है... एक ऐसा विषय जो शोचनीय है..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा...
आभार
बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteसही कहा…………अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteउसने मुस्कराकर एक नजर लाशों से पटी खाई पर डाली और फिर उन पर चलते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया.....
ReplyDelete....... bahut seekh deti laghukatha...
बहुत अच्छी लघु कथा है शायद उस महत्वअकाँक्षी का दूसरा चेहरा नही देख सकते लोग।िस लिये भेड चाल मे किसी की बातों मे आ ही जाते हैं। धन्यवाद।
ReplyDeleteबाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
जय हो!
आशीष
भोपाल गैस त्रासदी के बाद का प्रसंग याद आता है. राजकुमार केसवानी जी को उनकी रिपोर्ट के लिए सम्मानित किए जाने के अवसर पर उन्होंने कुछ इस तरह कहा था कि 'आज महसूस कर बेचैनी हो रही है कि गैस हादसे के शिकार लाशों की ढेर पर खड़ा हो कर मुझे यह ऊंचाई मिली है.
ReplyDeleteअंध भक्तों को सबक सिखाती प्रेरक लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लघुकथा है। वर्तमान में भी कितनी प्रासंगिक है।
ReplyDeleteदीपाली
बहुत ही शानदार लघुकथा
ReplyDeleteआपको बधाई
ओह! बाबरी मस्जिद/ राम मंदिर.....ऐसे ही ....और हजारों लाशों से सरयू पट गई.फिर भी नही समझ पाते ये अनुयायी.जाने क्यों 'वो' सब याद आ गया?
ReplyDeleteअच्छा लिखते हो.कुछ कुछ खलील जिब्रान जैसा.ये बात कम नही एक लेखक के लिए.हाँ! छोटी कहानियां ब्लोग्स के लिए बेहतर होती है.बड़े बड़े आर्टिकल्स लोग पढ़ते होंगे? पढ़ कर ही कमेन्ट करते होंगे?यकीन नही होता. आपका शोर्ट एन स्वीट लिखना अच्छा लगा.
बहुत सुन्दर लघुकथा ..
ReplyDeleteवास्तविकता के बिलकुल समानांतर
sach me apne mahatwakanchha ko jeevit rakhne aur usko pura karne ke liye kya aise dusro ko girana jaruri hoga.........!!
ReplyDeleteआजकल आकर्षक व्यक्तित्व के धनी भी ज्यादा हो गये है वे ब्यूटी पार्लर से सीधे टीवी चैनल पर आते है और उनके अंध भक्त तो आज कल इतने ज्यादा हो गये है कि कुछ पूछो मत ।अंध भक्तो को शिक्षा और उन पर व्यंग्य एक साथ सबकुछ कह गई आपकी ये कथा ।
ReplyDeleteसुन्दर लघुकथा है
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
कमाल की लघु कटा है ... बस शब्दों की संख्या ही लघु है ... बात तो बहुत लंबी करी है आपने .... मतलब भी बहुत गहरा है ...
ReplyDeleteवाह राजेश भाई !
ReplyDeleteऐसे ही तो हैं अधिकतर लोग ...थोडा सा भी प्रभावित होते ही अपनी पीठ पर किसी और का नाम लिख कर चलते हैं चाहे वह निकृष्टतम ही क्यों न हो ! ऐसे लोगों के इशारों पर खाई पाटने वालों की संताने कितनी स्वाभिमानी होंगी ...क्या संस्कार दे रहे हैं यह लोग ?? हार्दिक शुभकामनायें !
उत्साही जीए
ReplyDeleteबहुत गहराई हे आपकी इस लघुकथा में.आज भी उतनी ही प्रासंगिक.
कृपय मेरे इस ब्लाग पर पडी कुछ लघुकथा पर मेरा मार्गदर्शन करने का कष्ट करें..... www.srijanshikhar.blogspot.com
प्रवीण पाण्डेय जी से पूर्णतः सहमत.
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी सही लिखे हैं, पर मैं इसे उस महत्वाकांक्षी इंसान की गलती नहीं बल्कि उन अंधे समर्थकों की बेवकूफी मानूंगा ...
ReplyDeleteRAHOOL SINGH NE SAHI JODA GAS KAAND AUR RAJKUMAR KESWANI KI YAAD DILAI.
ReplyDeleteGAS KAAND ME BHI AISE HI BAHOOTO NE APNI MAHATVKANKSHA POORI KI HAI.
UDAY TAMHANEY.
BHOPAL.