शहर के लगभग बाहर पत्थर तोड़ने वालों की बस्ती में मजदूरों की दयनीय स्थिति देखकर उनके बीच कुछ काम करने की इच्छा हुई।
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बस्ती के हमउम्र लड़के और उनसे छोटे बच्चे मेरी बातें रुचि और ध्यान से सुन रहे थे। शायद कुछ कल्पनाओं में अपने आपको फुटबाल,व्हालीबॉल खेलते हुए,पढ़ते हुए भी देखने लगे थे। उनकी सपनीली आंखों में मुझे भी वह सब नजर आ रहा था।
तभी पीछे वाले झोपड़े से एक अधेड़ निकल आया।
‘ सबरा शहर मर गवा है का। यिहां आये हो फिटबाल,बिलीबाल खिलान। इन मोड़ा-मोडि़न का पढ़इएके का कलीक्टर बनाई दोगे। कछु नहीं हुइए यिहां। ....... भैया से पूछों हे तुमने? बस घुस आए।’
मैं हतप्रभ रह गया। मैंने कहा, ‘मैं जो कुछ करना चाहता हूं, उसके लिए......भैया मना नहीं करेंगे।’
‘ कछ़ु नहीं। पेलें.....भैया से पूंछ के आओ।’
सामने बैठे युवक से रहा नहीं गया। बोला, ‘ हलकू दादा,ये यहां हमें पढ़ाएंगे। अच्छी बातें बताएंगे। एकाध घंटा कुछ खेल खिलाकर मन बहला दिया करेंगे। कोई चकलाघर तो खोलेंगे नहीं।’
उसके पास शायद इससे बेहतर तुलनात्मक उदाहरण नहीं था।
‘ .........भैया कहियें तो चकलाघर भी खुलिहे।’ यह हलकू दादा का स्वर था।
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.......भैया उस बस्ती के वार्ड मेम्बर हैं।
0 राजेश उत्साही
(अपने जमाने के जाने-माने व्यंग्य कवि सुरेश उपाध्याय के संपादन में निकलने वाले एक साप्ताहिक अखबार -मकालू टाइम्स,इटारसी,मप्र- के 14 जनवरी,1982 के अंक में प्रकाशित)
बड़े भाई! उन पत्थर तोड़ने वालों की बस्ती ने उन्हें भी पत्थर का बना दिया है... कहीं कोई सम्वेदानाओं का सोता दबा भी होता है तो इन भैया जी (मेरे विचार से ये छुटभैया जी होने चाहिये)जैसे लोग उसमें ज़हएर घोल देते हैं... पत्थरों में सुगबुगाती सम्वेदनाओं का एहसास कराती लघुकथा!!
ReplyDeleteलघुकथा अच्छी लगी।
ReplyDeleteभैया कहियें तो चकलाघर भी खुलिहे।’
ReplyDeleteवाकई 'भैया' की मर्जी. पर उनके अहं को चोट न पहुँचे.
तल्ख लघुकथा
katu saty ko ujaagar kerti laghu katha
ReplyDeleteदेख तेरे इस देश की हालत क्या हो गयी भगवान।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी कहानी
ReplyDeletesamaj ki katu sachchhai ko ujager karti ek sundr laghukath.............
ReplyDeletesimply nice!
ReplyDeleteGALI-GALI KI KAHANI HAI.
ReplyDeleteUDAY TAMHANEY.
BHOPAL.
वर्ष 1987 से 1991 तक इटारसी में रहा था, मकालू टाइम्स मेरा पसंदीदा अखबार रहा है जिसके साथ बहुत सी यादें जुड़ी हुई है. क्या मकालू टाइम्स अभी भी प्रकाशित होता है?
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