जी हां मैं ही हूं। |
अब छब्बीस में से सबके नाम-पते तो याद नहीं। लेकिन कुछ हैं जिन्हें भुला नहीं सके हैं। सब कुछ तो यहां नहीं लिखा जा सकता न। पर कुछ कुछ है जो आपके साथ भी बांटा जा सकता है।
पहला प्रस्ताव
हमारे जमाने में लड़का या लड़की खोजने का काम घर के बुजुर्ग ही किया करते थे। कोशिश हमने भी की पर सफलता हाथ नहीं लगी। पहला प्रस्ताव ही अपने से चार साल बड़ी कन्या के सामने रख दिया। हां तब तक हम एकलव्य में नहीं आए थे। एक दूसरे दफ्तर में थे,जहां कन्या हमारी सहयोगी
थी। यह कन्या हमारी नानी जी को बहुत पसंद थी। हमारी नानी का कहना था जात-बिरादरी के चक्कर में मत पड़ो, जो तुम्हें पसंद हो उसे वर लो। हालांकि हमारे घर वाले नानी की बात से इत्तफाक नहीं रखते थे। नानी ने उकसाया तो हम भी उकस गए। कन्या राजी थी पर उसका कहना था कि उसके अपने घर वाले नहीं मानेंगे। बात खत्म हो गई।
थी। यह कन्या हमारी नानी जी को बहुत पसंद थी। हमारी नानी का कहना था जात-बिरादरी के चक्कर में मत पड़ो, जो तुम्हें पसंद हो उसे वर लो। हालांकि हमारे घर वाले नानी की बात से इत्तफाक नहीं रखते थे। नानी ने उकसाया तो हम भी उकस गए। कन्या राजी थी पर उसका कहना था कि उसके अपने घर वाले नहीं मानेंगे। बात खत्म हो गई।
घर में उजाला
ननिहाल नागपुर में है। अब न तो नानी हैं और न मामा,मामी। उस समय सब थे। जाहिर है कि नागपुर में भी हमारे लिए वधू खोजी जा रही थी। एक थी जिसके बारे में नानी कहती थीं कि इतनी सुंदर और गोरी है कि अंधेरे कमरे में उसे बिठा दो तो उजाला हो जाए। हमें देखने का मौका नहीं मिला। बात कहीं बीच में ही रह गई।
नागपुर में ही एक दूसरी लड़की से आमना-सामना हुआ। हम बीए पास थे। वे दसवीं पास करके सिलाई-बुनाई सीख रहीं थीं। उन दिनों जब आमना-सामना होता था तो लड़की के मां-बाप आमतौर पर यही बताते थे कि लड़की सिलाई-बुनाई जानती है,खाना अच्छा बनाती है,वगैरह वगैरह। हालांकि हमारे सवाल थोड़े लेखकीय किस्म के ही होते थे। मसलन आपको पढ़ना अच्छा लगता है। आप क्या पढ़ती हैं। साहित्य चिडि़या का नाम सुना है आदि आदि।
बहरहाल लड़की हमारे घर वालों को और हमें पसंद थी। हम भी उनकी पसंद सूची में थे। समझिए फेरे पड़ने ही वाले थे। लेकिन हमारे पिताश्री ऊंचाई के फेर में पड़ गए। हुआ यह कि पिताश्री को लगा कि होने वाली वधू वर से लम्बी है। सो उन्होंने शंका समाधान के लिए अपने होने वाले समधी को पत्र लिखकर लड़की की लंबाई सेंटीमीटर में पूछ ली। समधी साहब भड़क गए और उन्होंने कहा हमें आपका समधी बनना मंजूर नहीं। जनाब समधियों के चक्कर में मारे गए गुलफाम। क्योंकि होता क्या था कि जहां भी थोड़ी संभावना दिखती हम सपने देखना शुरू कर देते।
नागपुर में ही एक दूसरी लड़की से आमना-सामना हुआ। हम बीए पास थे। वे दसवीं पास करके सिलाई-बुनाई सीख रहीं थीं। उन दिनों जब आमना-सामना होता था तो लड़की के मां-बाप आमतौर पर यही बताते थे कि लड़की
बहरहाल लड़की हमारे घर वालों को और हमें पसंद थी। हम भी उनकी पसंद सूची में थे। समझिए फेरे पड़ने ही वाले थे। लेकिन हमारे पिताश्री ऊंचाई के फेर में पड़ गए। हुआ यह कि पिताश्री को लगा कि होने वाली वधू वर से लम्बी है। सो उन्होंने शंका समाधान के लिए अपने होने वाले समधी को पत्र लिखकर लड़की की लंबाई सेंटीमीटर में पूछ ली। समधी साहब भड़क गए और उन्होंने कहा हमें आपका समधी बनना मंजूर नहीं। जनाब समधियों के चक्कर में मारे गए गुलफाम। क्योंकि होता क्या था कि जहां भी थोड़ी संभावना दिखती हम सपने देखना शुरू कर देते।
वर्धा से झांसी तक
नागपुर से और आगे वर्धा से एक रिश्ता आया। इंजीनियर भाईयों की इकलौती लाड़ली बहन थी। पर परवान नहीं चढ़ा। खंडवा में हमारे फूफा जी थे। सो उन्होंने भी एक संभावित वधू खोजी। लड़की डाक-तार विभाग में मुलाजिम थी। हम पोस्टकार्ड खरीदने के बहाने उसे देखने पोस्ट आफिस गए। हमें लगा हमारी चिट्ठी सही जगह पहुंच गई है। पर चिट्ठी पर पर्याप्त डाकटिकट नहीं होने के कारण हम वहां भी बैरंग हो गए। आप समझ ही सकते हैं कि केन्द्रीय सरकार की मुलाजिम हमसे कैसे विवाह कर सकती थी।
झांसी में भी एक रानी को देखने का संयोग हुआ। सब कुछ ठीक ठाक था। पर यहां रानी जी के तीन भाई रेल्वे में मुलाजिम थे। उनकी प्राथमिकता भी कोई रेल्वे वाला ही था। हम भी रेल्वे वाले ही थे, पर मुलाजिम हम नहीं हमारे पिताश्री थे। तो यहां भी गाड़ी पटरी से उतर गई।
उज्जैन के एक जाने-माने लेखक महाशय को जब यह पता चला कि हम उनकी ही बिरादरी के हैं तो वे राशन पानी लेकर हम पर चढ़ बैठे। उनके किसी रिश्तेदार की इकलौती बिटिया थी। कहीं बात बन नहीं रही थी। महाशय ने हमें उनकी अकूत सम्पति का हवाला दिया और कहा कि आप बहुत सुखी रहेंगे। हम तो दहेज के द के भी खिलाफ थे। पर यहां तो सीधे-सीधे घर जमाई का प्रस्ताव था। हमने उन्हें कुछ ऐसा कह दिया कि फिर वर्षों उनसे आमना-सामना नहीं हुआ।
सागर,ग्वालियर,जबलपुर,मंडला,सीहोर,इंदौर और न जाने कितनी जगहों पर हम भटके। पर ठिकाना तो कहीं और ही था।
उज्जैन के एक जाने-माने लेखक महाशय को जब यह पता चला कि हम उनकी ही बिरादरी के हैं तो वे राशन पानी लेकर हम पर चढ़ बैठे। उनके किसी रिश्तेदार की इकलौती बिटिया थी। कहीं बात बन नहीं रही थी। महाशय ने हमें उनकी अकूत सम्पति का हवाला दिया और कहा कि आप बहुत सुखी रहेंगे। हम तो दहेज के द के भी खिलाफ थे। पर यहां तो सीधे-सीधे घर जमाई का प्रस्ताव था। हमने उन्हें कुछ ऐसा कह दिया कि फिर वर्षों उनसे आमना-सामना नहीं हुआ।
सागर,ग्वालियर,जबलपुर,मंडला,सीहोर,इंदौर और न जाने कितनी जगहों पर हम भटके। पर ठिकाना तो कहीं और ही था।
तो इंतजार कीजिए अगली किस्त का। शीर्षक है- अ का जादू।
इतना इंतजार कराया. एक बज रहे हैं. बहुत धैर्य रखते हो भाई. लो मेरी बधाई.
ReplyDeleteचलिए सुभाष जी कम से कम आप तो आए उत्साही जी की गुल्लक में।
ReplyDeleteक्या बात है भैया भारत के कई जाने माने शहरों से रिश्ते आएँ, पर वहीं है किस्मत में जहाँ लिखा होता है शादी भी वहीं होती है...उस जमाने में इतने रिश्ते आने भी बड़े रेकॉर्ड की बात है क्योंकि उस टाइम तो रिश्ते बहुत जल्दी ही फिक्स हो जाते थे अपने ही किसी रिश्तेदार या थोड़ा बहुत हटकर और वो भी बहुत जल्दी ही....कुछ खास बात तो है ही जो हर जाने माने शहर में एक एक पुरानी यादे छोड़ कर आएँ है भले ही शादी ना हुई पर एक छोटी सी कहानी तो ज़रूर बन गई जो उस शहर की याद दिलाती रहती है..और जहाँ हुई वहाँ तो वैसे ही ऐसी कहानी बनी की सारी जिंदगी भूला ही नही जा सकता है..
ReplyDelete.बड़ी ही रोचक अंदाज में रही आपकी यह पोस्ट हमें अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा....नमस्कार राजेश भैया
भाई इमरान खान ने कुछ तरह अपनी प्रतिक्रिया मेल से भेजी -rajesh bhai aap ko shadi ki salgira ki bhadhai our aap ne jo likha vakay me tarife kabil tha ateet me jakar aapne fir se apni yade taja kar li our yah kahne se bhi nahi dare ki 26 ladkiyo ne aap ko mana kiya tha fir bhi aap sangharsh karte rahe our kamyabi hasil mili
ReplyDeleteimran khan
पारुल बत्रा ने अपनी प्रतिक्रिया ईमेल से कुछ तरह से भेजी-
ReplyDeleteपहले शादी और लड्डू एक तरह से पर्याय वाची ही थे। शादी में जाओ और लड्डू ना मिलें ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन आजकल की शादियों में से लड्डू गायब है। शादी के खाने में भी आइसक्रीम और नई मिठाइयों के सामने बेचारे लड्डू को कोई नहीं पूछता। हाल में ही मेरे मामा जी के बेटे की शादी थी लेकिन शादी की मिठाइयों में से लड्डू नदारद थे।
भई, इतनी जल्दी क्या है गुल्लक खाली करने की। और हां, टिप्पणियां तो यहां भी आ रही हैं। सच कहता हूं, टिप्पणियों पर न जाएं।
ReplyDeleteसंस्मरण मजेदार लगा। हमसे काफी अनुभवी हैं आप।
@ प्रीति शर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा-
ReplyDeletedear sir,
Meine apka shadi ka laddu padda. bahut hi accha laga.sabse acchi baat lagi ki aap sach kahete ha apne kisi ko brahmit nahi kiya ase log ab duniya me bahut kam ha.apko shadi ki 25 vi saal girha mubark ho.
Preeti
@ शुक्रिया अजित भाई। अब आप आ गए तो टिप्पणियों का अकाल कहां है। आपकी एक टिप्पणी ही सवा लाख के बराबर है।
ReplyDeleteांअपको शादी की सालगिरह पर बहुत बहुत बधाई संस्मरण भी रोचक हैं
ReplyDeleteमुबारक हो शादी की सालगिरह औऱ साथ में शादी से पहले क्वार्टर सेंचुरी मारने की....दिल्ली का भी वाकया था क्या कोई...
ReplyDeleteशादी की सालगिरह मुबारक हो………………वैसे अच्छा खासा एक्सपीरियंस हो गया होगा।
ReplyDeleteAAPKI "SHADI KA LDDOO" PADH KAR
ReplyDelete"KOOCHH-KOOCHH HOTA HAI.
UDAY TAMHANEY.
BHOPAL.