Thursday, June 17, 2010

एक रुका हुआ फैसला: शादी लड्डू(4)


दिल टूट चुका था। टुकड़ों को समेटना और फिर से दिल लगाना, बहुत हिम्‍मत जुटानी पड़ी। दूसरी भोपाल की थीं। रेल्‍वे स्‍टेशन के पास एक थियेटर हुआ करता था-किशोर। उसके पास ही उनका घर था। पिता केन्‍द्रीय विभाग में थे। मां गृहणी थीं, पर कवियत्री के रूप में उनकी पहचान थी।

हम सपरिवार उनके घर गए। पहली ही नजर में वे हमें भा गईं और हम उनको। वैसे हम को तो सब पहली ही नजर में भाती रहीं हैं। हिन्‍दी साहित्‍य में एमए थीं और सचमुच का साहित्‍य पढ़ने में भी उनकी रुचि थी। पर यहां मामला थोड़ा टेढ़ा था। बात कुछ ऐसी थी कि हमें तो पसंद थीं, पर रंग और नैन नक्‍श में वे हमारे घर वालों की कसौटी पर खरी नहीं उतर रहीं थीं। पर औपचारिक बातचीत के बाद परिवार की भी लगभग सहमति बन गई। के माता‍-पिता होशंगाबाद आए। दिन भर हमारे घर रहे। नर्मदा में स्‍नान किया। हमारा घर बार उन्‍हें भी पसंद आया। की माताजी ने कहा हमारी बि‍टिया यहां सुखी रहेगी। 
उन‍ दिनों काम के सिलसिले में होशंगाबाद से भोपाल जाना होता था। कभी-कभी भोपाल में ही एकलव्‍य में रुक जाते थे। तो ऐसे ही किन्‍हीं दिनों में एक-दो बार उनके घर जाना हुआ। बात यहां तक बढ़ी कि की छोटी बहन बाकायदा हमें जीजाश्री कहकर पुकारने लगीं। हमें मैथी की भाजी बहुत भाती है। होने वाली साली साहिबा ने हमें यह जानकारी दी कि उनकी दीदी बहुत अच्‍छी भाजी बनाती हैं। दिल तो उन को दिया था। पर अब इन से सचमुच प्‍यार करने लगे थे। लगता था अपनी मंजिल बस मिल ही गई।
पर ऐसा था नहीं। इसके बाद जो हुआ वह सत्‍तर के दशक की किसी फिल्‍म की कहानी लगती है। हम भोपाल में थे। पिताजी का संदेश आया कि कुछ जरूरी बात करनी है होशंगाबाद पहुंचो। अगली गाड़ी पकड़कर तुरंत रवाना हुए। घर पहुंचे तो सूचना मिली कि यह रिश्‍ता नहीं हो सकता। इस बार हम आसमान से गिरे तो खजूर में भी नहीं अटके सीधे नीचे ही आ गए थे।
कारण पूछा कि क्‍यों भला। जवाब मिला कि कुछ ज्‍यादा ही पढ़ी लिखीं हैं। हमने पलटकर पूछा तो क्‍या हुआ है। जवाब मिला कि ज्‍यादा पढ़ी-लिखी बहू हमें नहीं चाहिए। हमने फिर पूछा कि इसमें समस्‍या क्‍या है। जवाब मिला दबकर नहीं रहेगी। हमें लगा कि आज इस बात का फैसला हो ही जाए। हमने सारा लिहाज उतारकर एक कोने में रखा और फिर पूछा वह दबकर क्‍यों रहे। इसका जवाब नहीं मिला। लेकिन जो जवाब उस चुप्‍पी में था उसका अर्थ हम समझते थे। उसके जवाब में हमने कहा औरत हमारे लिए पैर की जूती नहीं, बराबर की हकदार है। उसे दबकर रहने की कोई जरूरत नहीं।
 इस तरह की बातें कुछ और भी हुईं। कहा गया जो भी हो इस से रिश्‍ता नहीं हो सकता। बात कुछ समझ में आई नहीं कि आखिर माजरा क्‍या है। घर में इसके आगे कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था। बात बिगड़ चुकी थी। फैसला वास्‍तव में पहले हो चुका था केवल उसकी घोषणा अब हो रही थी। इसलिए इसमें तर्क की कोई बात सुनने की तैयारी नहीं थी। हमने भी एक कदम आगे बढ़कर अपना फैसला सुना दिया कि अब से रिश्‍ता चाहे न हो। लेकिन विवाह तो अब किसी ग्रेजुएट लड़की से ही करेंगे।


हम उल्‍टे पांव ही भोपाल आ गए और अगले एक हफ्ते तक घर नहीं गए। अरेरा कालोनी के रविशंकर नगर पोस्‍ट आफिस में खड़े होकर हमने की माताजी के नाम एक अंतर्देशीय पत्र लिखा।
मैं से बहुत प्‍यार करने लगा हूं। मैं को दुखी नहीं देखना चाहता। मैंने कहीं पढ़ा है कि अगर जीवन में सुखी रहना है तो जिससे प्‍यार करो उससे शादी कभी मत करो। मुझे पता नहीं है कि कारण क्‍या है। पर घर वाले इस रिश्‍ते के लिए अब तैयार नहीं हैं। मैं बगावत करके शादी कर सकता हूं, पर को वो खुशी नहीं दे पाऊंगा जिसकी वो हकदार है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप कोई और अच्‍छा सा लड़का देखकर उसका विवाह कर दें। मैं बहुत शर्मिन्‍दा हूं।
एक बार फिर दिल टूटा लेकिन अपने ही हाथों से।  

कई वर्षों बाद की माताजी एक कवि गोष्‍ठी में मिल गईं। हमने डरते-डरते उनका अभिवादन‍ किया। उन्‍होंने पहचान लिया। हमने के बारे में पूछा। उन्‍होंने कहा वह भोपाल में ही है। सुखी वैवाहिक जीवन बिता रही है। 
                                             0 jkts'k mRlkgh

9 comments:

  1. Very touching..

    Kai baar aisa hota hai. aapko unhi se shadi karni chahiye thee . aap kamzor nikle.

    Dukh hua .

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  2. @दिव्‍या जी आप सही कह रहीं हैं। मैं कमजोर पड़ गया था। क्‍योंकि इस एक रिश्‍ते के कारण मुझे और कई सारे रिश्‍तों को तिलांजलि देनी पड़ती। सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह थी कि इन परिस्थितियों में मैं अ को वह खुशी और जीवन नहीं दे पाता,जिसकी वह हकदार थी।

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  3. aap usse khushi de sakte they...lekin aap selfish nikle..."blood is thicker than water"....you played with emotions of an innocent girl. For you, your family members were priority, like any other man. You dererted her. She didn't complain.

    Really sad !

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  4. rajesh ji,trazedy ( dil ka yun bar-bar tootna trazedy hi to hai )ko comedy ke roop me aap hi pesh kr sakte hain par itna to hai ki anjaane hi aisa kuchh hathon se chhoot jata hai jiska malaal hamesha rahta hai . khair...aapko vivah ki rajat jayanti bahut-bahut mubaaraq .

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  5. यह पोस्ट दिल को छू लेने वाला है. उस पर दिव्या जी की बेबाक टिप्पणी ने इसे और भी उधेड़ कर रख दिया है.

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  6. Rajesh, tumhari yadon ke beech main der tak ghumta raha. Tumhen dhundhta raha. yaden to yaden hotin hain. Pankh hote hain unke. kabhi ud jaatin hain, kabhi pakad men aa jatin hain. par yadon men jindagi ke khatte-meethe par sachche anubhav hote hain. yah sachaai hi jeevan ke bhitar se kahani ko janm deti hai. aisi kahaniyan har kisi ki jindagi men hotin hain, par yad karne ka phark hota hai. ek aam aadami apni yadon ko us tarh nahin rakh sakta jaise ek lekhak ya kavi rakhta hai. tum achchha likhte ho, tumhari smriti bhi achchhi hai. chota se chota byora bhi tumse chhutata nahin hai. yah badi bat hai. isi arth men main tumhare bhitar ek kahanikar dekh raha hoon. pata nahin tumne kabhi kahani aajmaayee ya nahin par agar tum kahani likho to mujhe yakeen hai, bahut achchhi likhoge. idhar bahut dinon se lapata se ho, isiliye khoj-khabar lene aa gaya. ek jagah kisi anaam ne tippadi ki hai, chaliye Subhashji aap gullak men aaye to, unse main kahna chahunga ki main to gullak men hoon hi, mujhe aaya hua mat samajhen.

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  7. @दिव्‍या जी,
    चलिए अब बैचेन आत्‍मा जी के शब्‍दों में आपने मुझे उधेड़ ही दिया है तो मैं यह भी बताता चलूं कि यह केवल वह है जो मैंने महसूस किया। मुझे नहीं पता कि अ भी मेरी ही तरह सोचती थी या नहीं। शायद मैं बगावत के लिए तैयार हो जाता, शायद वह नहीं होती। शायद... यह शायद शब्‍द न होता तो कितना अच्‍छा होता।
    पर हां इतना तो जरूर है कि दिव्‍या जी इन टिप्‍पणियों में मुझे वह सुनने को मिला जिसका मैं हकदार हूं। शुक्रिया।
    @ शु‍क्रिया सुभाष भाई। आप शायद सही कह रहे हैं। मुझे भी लगता है कि मेरे अंदर एक कहानीकार है। 1981 से 1985 के बीच मैंने तीन कहानियां लिखीं थीं,वे प्रकाशित भी हुईं। फिर मैं चकमक में आ गया और सारी ऊर्जा उसमें लगाता रहा। अब फिर से सोच तो रहा हूं,असल में ब्‍लाग लेखन भी उसी को गति देने का प्रयास है। देखें कब शुरू हो पाता है।

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  8. AAPKA TYAAG MAHAAN HAI.
    UDAY TAMHANEY.
    BHOPAL.

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...