इस 22 अक्टूबर को एकलव्य द्वारा प्रकाशित मासिक बालविज्ञान पत्रिका चकमक के 300 वें अंक का विमोचन
भोपाल के भारत भवन में गुलज़ार कर रहे हैं। चकमक के प्रकाशन का यह 27 वां साल है।
कह सकते हैं एक तरह से चकमक अब परिपक्व हो गई है।
चकमक के पहले अंक (जुलाई 1985) से लेकर उसके
लगभग 190 वें अंक तक मैं उसकी सम्पादकीय टीम में था। मैं कभी संपादक नहीं रहा।
लेकिन इस दौरान पूरे समय मेरी भूमिका कार्यकारी सम्पादक की रही। चकमक से अलग हुए
और बिछड़े हुए लगभग 110 अंकों का समय गुजर गया है। जाहिर है चकमक भी अब बहुत बदल
गई है। यह वह चकमक नहीं रही जो शुरू होते समय रही थी। उसका रंग रूप,पाठक,लेखक सब
बदल गए हैं। सच तो यह है कि समय के साथ सबको बदलना पड़ता है। लेकिन यह सवाल जरूर
पैदा होता है कि क्या हमारी प्रतिबद्वताएं भी बदल जाती हैं।
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चकमक : बाएं से दाएं अंक 1 से 32 |
मुझे याद आ रहा है वह समय जब चकमक ने जब अपने 100
अंक पूरे किए थे। वह समय था 1993 का। हम लोग सौवें अंक की तैयारी कर रहे थे। लगभग
100 पृष्ठों के इस अंक में चकमक के पुराने अंकों से चुनी हुई रचनाएं फिर से प्रकाशित
की जानी थीं। श्रीप्रसाद, राष्ट्रबंधु, गिरिजा कुलश्रेष्ठ,के.कृष्णकुमार, लाल्टू,
भगवती प्रसाद दिवेद्वी,हरीश निगम, अशोक अंजुम,दिविक रमेश, गुलज़ार,अमृतराय और जयंत
नार्लीकर ने अपनी ताजातरीन रचनाएं चकमक के लिए दी थीं। पराग के पूर्व सम्पादक
हरिकृष्ण देवसरे ने चकमक के स्तम्भों पर एक समीक्षा लिखी थी। बच्चों की रचनाएं
तो चकमक में होनी ही थीं। हरचंदनसिंह भट्टी,शोभाघारे,आशा शर्मा,हुताराम
अधिकारी,जनगढ़सिंह श्याम,फरहान मुजीब,नर्मदाप्रसाद,दुर्गाबाई,कैरन हेडॉक,विष्णु चिंचालकर,राजुला
शाह, आनंदसिंह श्याम,किशोर उमरेकर,शिवेन्द्र पांडिया, विवेक और जयाविवेक के
चित्र थे।
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चकमक : बाएं से दाएं अंक 33 से 68 |
लेकिन इस अंक में जो सबसे खास था वह उसका आवरण। उसकी
परिकल्पना करना और उसे सचमुच हकीकत में उतारना एक यादगार अनुभव था हमारे लिए। एकलव्य
में नेशनल ज्योग्राफी पत्रिका आती थी। एक अंक में उसके पुराने अंकों के आवरण की
तस्वीरें बहुत सुंदर तरीके से दी हुई थीं। उसे देखकर मुझे विचार आया कि क्यों न
चकमक के 100वें अंक में हम लोग भी ऐसा कुछ करें। यह बात मैंने संपादक विनोद रायना
और कला सज्जाकार जयाविवेक को बताई। ऐसा करना सचमुच एक चुनौती थी। तरीका सोचा गया।
चकमक के पिछले 99वें अंक एकत्रित किए गए। हर अंक से
उसके आवरण पृष्ठ को निकाला गया। हर आवरण को जया ने बहुत संभालकर चारों तरफ से
काटा। थर्मोकोल की एक शीट को फ्रेम बनाकर
उस पर क्रम से 6 अंकों के आवरण पृष्ठ आलपिन की सहायता से लगाए गए। विनोद भाई ने
अपने कैमरे से उसका फोटो खींचा। उसी शीट पर अगले 6 आवरण पृष्ठ लगाए गए। फिर उनका
फोटो खींचा गया। इस तरह 99 अंकों के आवरण पृष्ठों के फोटो लिए गए। फोटो डेवलप
होकर आए। जया के लिए फिर एक काम था। हर अंक के आवरण पृष्ठ की फोटो लगभग डाक टिकट
के आकार की थी। फिर से उन्हें सफाई से काटा गया। फिर उन्हें तीन फ्रेमों में
क्रम से लगाया गया। जिन्हें अंतत: प्रेस में छपाई के लिए भेजा गया। 99 अंकों के आवरण
पृष्ठ इस सौंवे अंक के तीन आवरण पृष्ठों पर फैले थे। जिन्हें आप यहां देख सकते
हैं। जब चकमक ने अपने 200 अंक पूरे किए, तब इस प्रयोग को फिर दोहराया गया। लेकिन
वह बात नहीं बनी,जो इस अंक में थी। हालांकि 200 वें अंक तक आते-आते विकसित कम्प्यूटर
तकनॉलॉजी का प्रयोग चकमक में होने लगा था।
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चकमक : बाएं से दाएं अंक 69 से 99 |
चकमक के सौवें अंक का विमोचन भोपाल के जवाहर बालभवन
के खुले प्रांगण में सैंकड़ों बच्चों की मौजूदगी में मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री
दिग्विजय सिंह ने किया था। मेरे लिए यह अवसर इसलिए भी यादगार रहा क्योंकि इस
कार्यक्रम का संचालन का काम मुझे ही सौंपा गया था। जानकारों के मुताबिक मैं इसमें
खरा उतरा था।
सौवें अंक तक आते-आते चकमक ने अपनी वह जगह बना ली
थी कि एक जमाने में एकलव्य के धुर विरोधी रहे ज्ञानरंजन जी ने भी अपनी पत्रिका ‘पहल’
में सौंवे अंक पर एक समीक्षा प्रकाशित की थी। यह समीक्षा मेरे आग्रह पर जाने-माने कहानीकार रमेश उपाध्याय ने
लिखी थी।
चकमक के साथ जुड़ी हुई बातों और यादों की एक अकूत गुल्लक मेरे पास है। मेरे कई ख्याबों में से एक ख्याब यह भी है कि मैं चकमक के विभिन्न अंकों से जुड़ी अनकही बातों को सिलसिलेवार लिपिबद्ध करुं। 0 राजेश उत्साही
चकमक के 300 वें अंक के लिये हार्दिक बधाई। चकमक आपके सानिध्य मे इसी तरह अपने 1000 वें पायदान पर पहुंचे।
ReplyDeleteचकमक के ३००वें अंक के लिये बधाई..
ReplyDeleteचकमक के जितने अंक मैंने देखे (1990 से 95 तक तो लगभग लगातार) सभी स्रग्रहणीय थे. चकमक, अपने आप में इतिहास समेटे है.
ReplyDeleteराजेशजी चकमक ने तीन सौ अंक पूरे कर लिए इस लिए मुझे भी लगता है इस पूरे सफर और चकमक मे प्रकाशित होने वाली सामग्री को ले कर आप एक से ढेड़ पेज का आर्टिक्ल लिख कर मेरे पास भेज दे इस हम राजस्थान से प्रकाशित होने वाली सीखण री जुगत का हिस्सा बनाना चाहेगे
ReplyDeleteउम्मीद है जल्द ही यह आर्टिक्ल मैं पढ़ सकुगा
मेरे सिक्के जमा करे
एक पत्रिका को सजाने-संवारने में कितनी मेहनत लगी होती है...उस पत्रिका से जुड़े लोग ही जानते हैं..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा..चकमक से सम्बंधित ये रोचक वृत्तांत पढना
चकमक के ३००वें अंक के लिये बधाई !!
meri shubhkamnayen hain aur vishwaas hai ki aap hamesha ki tarah jitenge....
ReplyDeleteचकमक के एक भी अंक मैंने अभी तक पढ़ें नहीं लेकिन चकमक से समबन्धित ये पोस्ट काफी अच्छी लगी...चकमक के ३००वें अंक के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteलगता है आप चकमक के साथ , मन की गहराई से जुड़े हैं !
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें राजेश भाई !
पहली बार जाना की बिना कंप्यूटर के इस तरह के कामो को करना कितना मुश्किल भरा हो जाता है |
ReplyDeleteचकमक के ३०० वे अंक की बधाई !
बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
ReplyDeleteचकमक अद्भुत बाल पत्रिका थी उन दिनों...अब हालाँकि उसकी प्रकाशन की तकनीक विकसित हो गयी है लेकिन कथ्य में अब उतना आकर्षण नहीं रहा...
ReplyDeleteनीरज
aapke dwara paalit poshit chakmak baal patrika sach mein ab paripkwa ho chali hai aur samay ke saath badav aana swabhawik hai... lekin aaj jahan computer se yah kaam sulabh jaan padta hai wahin shurwat mein aap logon dwara jitne mehanat kee hai iska andaja lagana saral nahi phir bhi main to yahi kahungi ki jis tarah ek bachha yuwa hota hai usi tarah aaj chakmak 27 varsh ka yuwa ho chala hai...
ReplyDelete300wei ank ke ke safal vimochan ke liye hamari bhi haardik shubhkamnayen ..
चकमक की इस स्मृति से बहुत से प्रसंग ताजा हो उठे हैं । सचमुच मेरे सृजन में चकमक और उसे सँवारने वाले उत्साही जी दोनों का ही महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
ReplyDeleteचकमक के ३००वें अंक के मौके पर आपको बहुत बहुत बधाई....मुझे याद है मेरे बेटे की (जो उस वक़्त चार साल का था) दो ड्राइंग चकमक में छपी थी.
ReplyDeleteचकमक पढ़ कर बड़ा हुआ हूं. कुछ अंक हमारे पास भी होंगे.... अच्छा लगा पढ़ कर.... प्रकाशन प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है... बढ़िया संस्मरण.... खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर रहा हूं....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और प्रेरणादायी संस्मरण लग रहा है..आपकी गुल्लक से निकली बाकी की सामग्री का इंतज़ार है.
ReplyDeleteबहुत ही सुखद लगा जानकर!
ReplyDeleteआप इससे जुड़े संस्मरण लिपि बद्ध करें, हमें अच्छा लगेगा।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
RAJESHJI. CHAKAMAK ME AAPKA YOGDAAN TO ANOOKARNIY HI HAI. @ UDAY TAMHANEY.BHOPAL.
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