कभी - कभी कोई चेहरा, कोई घटना, कोई बात इस तरह दिल को छू जाती है कि ताउम्र पीछा नहीं छोड़ती। बात 1975 के आसपास की है। तब मैं ग्यारहवीं का विद्यार्थी था। इटारसी में रहता था। कविताएं लिखना शुरू कर चुका था। कादम्बिनी पत्रिका का एक कालम था जिसमें उभरते रचनाकारों की कविताएं प्रकाशित होती थीं। मैं यह कालम बहुत ध्यान से पढ़ता था। किसी एक अंक में इस कालम में प्रज्ञा तिवारी की एक कविता प्रकाशित हुई। उसकी चार पंक्तियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वे चार पंक्तियां मैंने अपनी कविता की कॉपी के पहले पन्ने पर लिख लीं। वे आज भी लिखीं हैं। ज्यों – ज्यों दिन बीतते जा रहे हैं, ये पंक्तियां महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। प्रज्ञा मध्यप्रदेश में गाडरवारा या नरसिहंपुर में किसी एक जगह की थीं। पता नहीं वे अब कहां हैं पर उनकी ये चार पंक्तियां हमेशा मेरे साथ हैं-
लक्ष्य तो दृढ़ थे आरम्भ से ही
पर हर घटना अचानक हो गई
कहां तक समेंटे हम पृष्ठ इसके
जिन्दगी बिखरा कथानक हो गई
चार पंक्तियों से याद आया कि ऐसी ही चार और पंक्तियां हैं जो मुझे हमेशा याद रहती हैं। गाहे बगाहे ये बहुत काम भी आती हैं। ये चार पंक्तियां मशहूर गीतकार इंदीवर की हैं-
कोई न कोई तो हर एक में कमी है
थोड़ा - थोड़ा हरजाई हर आदमी है
जैसा हूं वैसा ही स्वीकार कर लो
वरना किसी दूसरे से प्यार कर लो
लक्ष्य तो दृढ़ थे आरम्भ से ही
पर हर घटना अचानक हो गई
कहां तक समेंटे हम पृष्ठ इसके
जिन्दगी बिखरा कथानक हो गई
चार पंक्तियों से याद आया कि ऐसी ही चार और पंक्तियां हैं जो मुझे हमेशा याद रहती हैं। गाहे बगाहे ये बहुत काम भी आती हैं। ये चार पंक्तियां मशहूर गीतकार इंदीवर की हैं-
कोई न कोई तो हर एक में कमी है
थोड़ा - थोड़ा हरजाई हर आदमी है
जैसा हूं वैसा ही स्वीकार कर लो
वरना किसी दूसरे से प्यार कर लो
प्रज्ञा जी की कविता की चार पंक्तियाँ अद्भुत हैं...हमें पढने का मौका दिया...आभार आपका...
ReplyDeleteनीरज
bahut achha laga !
ReplyDeletewaah waah