आमतौर पर जब हम रेल्वे स्टेशन पर किसी गाड़ी की प्रतीक्षा करे रहे होते हैं
तो समय काटना मुश्किल लगने लगता है। खासकर तब जब गाड़ी देर से आने वाली हो। ऐसे
में आपके पास सिवाय मक्खियां उड़ाने के और कोई काम नहीं होता। अगर कोई आपको सीऑफ
करने आया है या आप किसी को सीऑफ करने आए हैं तब भी कई बार बातों का कोटा खत्म हो
जाता है और केवल अगल-बगल झांकते ही नजर आते हैं। वैसे आजकल रेल्वे स्टेशनों पर
टीवी स्क्रीन भी समय काटने का एक साधन होते हैं। पर वे हमारी मूक फिल्मों के
जमाने को याद दिलाते हैं। क्योंकि आमतौर पर उन पर केवल चित्र ही दिखाई देते हैं,
आवाज अगर होती भी है तो वह दो-तीन रेडियो स्टेशनों के एक-साथ चलने पर आने वाली
आवाज की तरह। बहरहाल....।