Wednesday, March 14, 2012

बंगलौर में : 'वह, जो शेष है'

बाएं से दाएं : आजवंती भारद्वाज,निराग दवे,नितिन लक्ष्‍मणा,जयकुमार मरिअप्‍पा,राजेश उत्‍साही,शंकरन एस,राजकिशोर,मुजाहिद-उल-इस्‍लाम ,रवि बाबू और बैठे हुए जूनी के विल्‍फ्रेड
उदयपुर की यात्रा से 6 मार्च को जब कार्यालय पहुंचा तो मेरे पास संग्रह की केवल 9 प्रतियां थीं,देखते ही देखते 7 प्रतियां साथियों ने खरीद लीं। मेरी टीम के साथियों ने संग्रह को ठीक उसी तरह हाथों हाथ लिया,जैसे किसी नवजात शिशु को लिया जाता है। जाहिर है कि फिर यह तो होना ही था। एजूकेशनल टेक्‍नॉलॉजी एंड डिजायन (ईटीडी) नाम है मेरी टीम का। टीचर्स ऑफ इंडिया पोर्टल टीम भी इसका हिस्‍सा है। तमिल भाषी शंकरन जी मेरा संग्रह देखकर इतने अधिक उत्‍साहित थे, कि उन्‍होंने भी एक प्रति खरीद ली। वे हिन्‍दी पढ़ नहीं पाते हैं, पर सुनकर समझने की कोशिश करते हैं। मेरी इस उप‍लब्धि का जिक्र उन्‍होंने अपनी अंग्रेजी पत्रिका ई-टच में किया है।
                                                                                                                      0 राजेश उत्‍साही 

8 comments:

  1. हम भी 'टच्ड' महसूस कर रहे हैं गुरुदेव!!

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  2. यह हमें भी चाहिए भाई जी ....
    शुभकामनायें आपको !

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  3. अच्छा लगता है अपनों से खुशियाँ बांटना...
    और अपनों का प्यार पाना.
    ढेर सी शुभकामनाये आपको सर.

    सादर.

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  4. बंगलूरु में कहाँ उपलब्ध होगी बता दें. बधाई तो पिछले पोस्ट पर दे ही दी

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  5. अच्छे रचनाकारों की देर सबेर ही सही लेकिन पूछ परख समय आने पर जरुर होती है और जो आप जैसे जमीन से जुड़े लेखक है उनको भला कौन याद नहीं करना चाहेगा
    आपके ब्लॉग पर आकर बहुत ख़ुशी हुयी.
    पुस्तक प्रकाशन पर बधाई स्वीकार करें,,,,,

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  6. बहुत-बहुत बधाई सहित शुभकामनाएं ।

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  7. Mujhe bhi aapki 'वह, जो शेष है' pustak sangrah bahut achhi lagi.. khaskar NEEMA kavita mein jiwan ki kathin raah ka yatharth chitran man ko bahut udelit karta hai... kathin kshanon mein raah kabhi kitni kathi to kabhi kitni saral banti bigadti hai yah bade bhi marmsparshi dhang se mukhrit hua hai.... aur kavita ke ant mein mein
    ham ab tak saath hai
    aur rahinge
    aaj ki bas itni sachhai hai" ..
    taatkalik paristhityon ki or saaf ishara karti hai.
    ..kulmilkar ek naari hai jise jaane kitne hi modon par samjhauta karna padta hai..
    ..Kabbu kavita padhkar apne chhote bachhon ki baaten yaad karne lagi.. we bhi....kuch isi tarah pesh aate hain.... aur aajkal ke bachhon ki to pucho nahi...

    saadar

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