Saturday, November 14, 2009

एक जन्‍मदिन ऐसा भी


साल 2000 के अक्‍टूबर के दिन थे। एकलव्‍य का कार्यालय अरेरा कालोनी के ई-1/25 में था।  शाम के साढ़े सात बजे रहे थे। बाकी सब लोग जा चुके थे। मैं रोज की तरह अपने काम में व्‍यस्‍त था। मैंने अपने कमरे के दरवाजे पर एक मधुर और विनम्र आवाज सुनी,’क्‍या हम अंदर आ सकते हैं।‘ मैंने देखा एक उम्रदराज पुरूष और महिला वहां खड़े हैं। मैंने कहा आइए और अभिवादन के साथ उन्‍हें बैठने का इशारा किया।

औपचारिक बातचीत के बाद उन्‍होंने आने का मकसद बताया। वे थे प्रेम सक्‍सेना और उनकी पत्‍नी श्रीमती शंकुलता सक्‍सेना। प्रेमजी बीएचईएल से सेवानिवृत हैं और शंकुतला जी कार्मेल कान्‍वेट स्‍कूल में अध्‍यापिका थीं। अब वे भी सेवानिवृत हो गई हैं।  

उन दिनों भोपाल के आंचलिक विज्ञान केन्‍द्र में एकलव्‍य के प्रकाशनों की एक प्रदर्शनी चल रही थी। उस प्रदर्शनी को देखने सक्सेना दम्‍पति भी गए थे। उनके साथ उनकी साढ़े चार साल की नातिन शुभि भी थी। प्रदर्शनी में एकलव्‍य के स्‍टाल पर छोटी-छोटी कहानियों की लोकप्रिय किताबें तीन साथी,दो तोते और हलीम चला चांद पर भी थीं। रूसी-पूसी सीरिज की किताबें भी थीं। ये सब किताबें शुभि ने पसंद की तो प्रेमजी खरीदकर ले गए। 

ये किताबें और उनकी कहानियां शुभि को इतनी पसंद आईं कि वो इन्‍हें अपने तकिए के नीचे रखकर सोती थी। रात को जब भी उसकी नींद खुलती किताबें लेकर बैठ जाती। पढ़ना उसे नहीं आता था, पर अपने दादा-दादी से सुनी कहानी के आधार पर वह बोल-बोलकर पढ़ती। और कभी-कभी दादा-दादी को नींद से जगाकर सुनाने के लिए कहती। दादी-दादा शुभि की इस दीवानगी से चकित थे। पर उतने नहीं जितने मैं और आप यह बात सुनकर हो रहे होंगे ।

असल में शुभि कविताएं भी करती थी। वो कविताएं बोलती और दादी अपनी डायरी में उसे लिपिबद्ध कर लेंती। दादी की डायरी में उसकी कुछ बीस-पच्‍चीस कविताएं एकत्रित थीं। दादा-दादी भी कविताएं करते हैं। दादाजी तो एक जमाने में मंच पर कविताएं सुनाए करते थे। खैर। शुभि कुछ दिनों में पांच साल की होने वाली थी। दादा-दादी के मन में एक अनोखा विचार आया कि क्‍यों न शुभि के पांचवें जन्‍मदिन पर उसकी कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित किया जाए। बस वे इसी सिलसिले में एकलव्‍य आ पहुंचे थे। एकलव्‍य की उन छोटी किताबों को देखकर उन्‍हें लगा कि एकलव्‍य से इस बारे में जरूर कुछ मदद मिलेगी।

मैं बच्‍चों की पत्रिका चकमक में काम कर रहा था। शुभि के बारे में सुनकर और उसके ऐसे अनोखे दादा-दादी से मिलकर सचमुच अभिभूत था। मैं इस काम के लिए तुरंत तत्‍पर हो गया। हालांकि मैंने उन्‍हें यह सुझाव दिया था कि वे संग्रह की जगह अगर एक कैलेंडर प्रकाशित करें तो उसका ज्‍यादा प्रभाव होगा। क्‍योंकि किताब तो अंतत: कहीं अलमारी में बंद हो जाती है या दब जाती है। कैलेंडर कम से कम साल भर दीवार पर टंगा रहता है। पर सक्‍सेना दम्‍पति चाहते थे कि संग्रह ही प्रकाशित हो। मैंने कहा ठीक है।

22 कविताओं का चयन किया गया। मजेदार बात यह कि इन कविताओं के लिए चित्र शुभि ने ही बनाए हैं। किताब का साइज सोचा गया। किताब की डिजायन और ले आउट के लिए मेरे दिमाग में शिवेन्‍द्र पांडिया का नाम आया। शिवेन्‍द्र पांडिया आज भोपाल के जानेमाने लेआउट  डिजायनर हैं। शुरूआत उन्‍होंने जब वे आठवीं में पढ़ते थे तो चकमक से की थी। चकमक के लिए वे काम कर ही रहे थे। मैंने शिवेन्‍द्र से बात की । वे भी तुरंत तैयार हो गए। प्रेमजी ने कह‍ दिया था कि इस संग्रह के प्रकाशन में जो भी खर्चा होगा उसका इंतजाम वे कर लेंगे।

शुभि का पांचवां जन्‍मदिन 6 जनवरी,2001 को था। उसके पहले संग्रह तैयार होना था। योजना यह थी कि जन्‍मदिन के कार्यक्रम में ही संग्रह का विमोचन किया जाएगा। किसी बच्‍चे के जन्‍मदिन पर किताब का विमोचन। यह मैं पहली बार ही सुन रहा था। सुन क्‍या रहा था अब तो उसे साकार होते देख रहा था। मेरे लिए सबसे खुशी की बात तो यह थी कि मैं इस आयोजन का हिस्‍सा था। किताब का डिजायन बना,लेआउट हुआ। शुभि के बनाए चित्र डाले गए। डमी बनी। अतंत: संग्रह ने अंतिम रूप लिया। संग्रह का आवरण बहुरंगी रखा गया और अंदर की छपाई ब्‍लैक एंड व्‍हाइट । छापने के लिए आदर्श प्रिंटर्स को चुना गया। आखिरकार शुभि की कविताओं का संग्रह छपकर आ गया।

लेकिन मेरे लिए अभी एक सरप्राइज बाकी था। ऐसे अनोखे जन्‍मदिन समारोह में तो मुझे जाना ही था,लेकिन प्रेमजी ने मुझसे आग्रह किया कि किताब का विमोचन भी मैं ही करूं। मना करने का तो प्रश्‍न ही नहीं था।

      (चित्र में बाएं से दाएं राजेश उत्‍साही,शुभि के मम्‍मी-पापा और दादा-दादी हैं। और बीच में आंखें बंद किए शुभि ।)

तो छह जनवरी की उस शाम को शुभि ने अपनी पांचवीं वर्षगांठ मनाई और जन्‍मदिन मनाने वालों को एक नई राह भी सुझाई। संयोग से 13 नवम्‍बर को मेरा जन्‍मदिन था। जन्‍मदिन पर मुझे यह अनोखा जन्‍मदिन समारोह याद आया। और दूसरे संयोग से आज बालदिवस है तो मैंने सोचा इस का जिक्र अपने ब्‍लाग पर करने का इससे अच्‍छा दूसरा दिन नहीं होगा।


शुभि के इस संग्रह की कुछ कविताएं यहां प्रस्‍तुत हैं। फिलहाल मैं शुभि के बनाए चित्र नहीं दे पा रहा हूं। बाद में कभी संभव हुआ तो कोशिश करूंगा।

।।कुर्सी में फंसे भगवान।।

एक थे भगवान
वो कुर्सी में
फंसे ही रहते

और मुन्‍नू-चुन्‍नू
उनके मटके में पानी
भर देती थी

जो टपकता रहता
उनके ऊपर पानी
तब वो नहा भी लेते थे
और चुन्‍नू से
खुश होकर
सो जाते थे।

।।घड़ी।।
टिक-टॉक
टिक-टॉक
घड़ी बोली
घड़ी बोलकर
रूक जाती
रूक रूक कर
वो समय बताती

कभी उसमें छ: बजते

कभी बजाती बारह

और कभी

पौने बारह

।।प्रदर्शनी।।

एक दिन मैं
देखने गई प्रदर्शनी

कीड़े-मकोड़े थे
उसी दिन मुझे
काटा था मधुमक्‍खी ने

प्रदर्शनी में हमें
ग्रासहॉपर दिखा

वो टेड़ा-मेड़ा मुंह करके
मुझे ही देखे जा रहा था।

।।सूखा मेरा देश।।

एक देश
मेरा सूखा-सूखा

उसमें एक बच्‍चा
प्‍यासा प्‍यासा

वो
कुएं में पानी
पीने जाता

तब उसने देखा
झुककर
पानी-मानी कुछ नहीं है
बच्‍चू ऐसा ही वापस आ जाता।


6 comments:

  1. बेहद खूबसूरत संस्मरण प्रस्तुत किया आपने मुझे शुभी के दादा दादी का विचार बहुत पसंद आया जिन्होने इतना अच्छा तोहफा पोती को गिफ्ट में दिया ..एक अलग परंतु बेहद यादगार जन्मदिन और उस जन्मदिन मनाने का तरीका भी.. साथ ही साथ आपका भी प्रयास बहुत सराहनीय रहा जिन्होने दादा दादी के देखे सपने को साकार करने की ज़िम्मेदारी ली और उसे अंत तक ले गये..निश्चित रूप पुस्तक विमोचन के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति आप ही थे,,

    बॉल दिवस पर सुंदर कविताएँ का प्रस्तुतिकरण ..बहुत बढ़िया लगा...धन्यवाद राजेश जी ,,फिर से कहूँगा बहुत बढ़िया संस्मरण प्रस्तुत किया आपने..

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  2. परम आत्मीय उत्साही जी,
    सानुराग वंदे!
    सबसे पहले तो आपके जन्मदिन(13 नवम्बर ) की हार्दिक शुभकामनाएं.आपके जीवन के ये मंगल क्षण आपको सपरिवार स्व्स्थ तथा प्रसन्न रखते हुए स सफलताओं के और और नये आयामों से सन्दर्भित करें-ईश्वर से यही प्रार्थना है.
    अपने जन्मदिन के इस सोपान पर ,आपने अपने ब्लाँग पर जो दर्शाया है -वो अनुपम है .वो इसलिए कि, 13 नवम्बर आपका जन्मदिन (बाल दिवस 14 नवम्बर कि पुर्व संध्या )और इसी दिन "शुभि सक्सेना की शिशु कविताएं"का अपने ब्लाँग पर ,उसकी चुनिंदा कविताओं का सन्योजन .बहुत अदभुत संयोग कि परिकल्पना और उसका क्रियांवन .अद्वितिय-प्रसंग रचा है आपने इस दिन.
    बधाई! ऐसा प्रसंग न पहले कभी देखने को ही मिला और ना पढनें को,ये सुयोग ,आपके व्यक्तित्व का परिचायक है कि,बाल-मनों के प्रति आपका अगाध प्रेम किस सीमा तक है .काश !हमारे अन्य बाल-साहित्य रचयिता/मनिषी /मर्मज्ञ भी,ये गुण धर्म -स्व्यं में समाहित करें,अंगीकार करें ,तो 'भारत का बचपन ' इनके इन अवदानों का भी चिरऋणी रहेगा .
    शुभि के सन्दर्भित कविता संकलन से ,चुनिंदा कविताओं को अपने जन्मदिन पर निजी ब्लाँग पर सन्योजित कर -उसके नन्हें और मासुम काव्य जगत को धन्य कर दिया है आपनें.हम सभी परिवार जन आपकी इस अनुकम्पा हेतु सदेव आभारी रहेंगे. आशा है कि भविष्य में भी शुभि और शुभि समान अन्यान्य प्रतिभावान बालक -बालिकाओं के लिए अपने अगाध स्नेहिल आषीशों से कृतार्थ करतें रहेंगें,सदेव ही.
    आपके द्वारा सयोजित ब्लाँग देखने के बाद शुभि तो उछल ही पडी साथ ही शुभि का छोटा भाई अमन भी.दोनों ही भाई बहन बहुत ही उत्साहित और प्रसन्न है .अमन अपनी दीदी शुभि से बोला "अब मेरी बारी है,जब मेरा ब्लाँग भी आएगा तब दीदीआप देखकर दंग न रह जायें... तो कहना !"
    बिटीया शुभि हेतु-इस स्नेहाषीश के लिए पुन: आभार सहित....

    भोपाल,16 नवम्बर 2009 शुभि सक्सेना के दादाजी एवं दादीजी
    (प्रेम सक्सेना-शकुंतला सक्सेना)
    ए/165,सोनागिरी,भोपाल-21

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  3. शुभि सक्सेना की शिशु कविताएं: एक पुनर्वालोकन .

    स्व्स्कुर्त शुभि अपनी उम्र के चोथे वर्ष से ही अपनी ममतामयी दादीमाँ की छत्रछाया में पली और बढी.तभी से अपनी अन्त: प्रेरणा से प्रेरित होकर दादी माँ से कहती -दादीजी! मैं कविता कहती हुँ-आप अपनी डायरी मे लिखती जाइये,इसके बाद मैं फिर इसी कविता का चित्र भी बना दुंगी .तब दादी मां शुभि द्वारा उच्चारित प्रेत्येक शब्द जस का तस ,जो शुभि बोलती वे शब्द बद्ध करती जाती बगेर किसी भाषाई संशोधन के .ताकि कविता कि मासुम ताज़गी का मुल अर्थ किंचित भी प्रेभावित न हो और न ही कोमल अनुभुतियों से हल्की सी भी छेड्छाड .
    दादीमां सुखद आश्चर्य और पुल्कित मन प्राण से शुभि की नन्हीं-मुन्नीं कविताओं के संसार में आकंठ डुबी तिरोहित होती रहीं और कब एक साल बीत गया-पता ही नहीं चला,और इस एक साल के अंतराल में संकलन में संग्रहित 22 मासुम कविताएं,शुभि द्वारा ही चित्रांकित तैयार थी प्रकाशन हेतु. दादाजी और दादी मां ने शुभि के पाँचवें जन्मदिन की वर्षगाँठ पर विमोचन हेतु छपवाकर तैयार कर ली.
    शुभि के पांचवी साल गिरह पर गणमान्य साहित्यिक एक सांस्कृतिक रुचि के परीवारों की गरिमामयी उप्सतिथी में एक समारोह में श्री राजेश 'उत्साही' -बाल विज्ञान पत्रिका 'चकमक ' के सम्पादक जी के (मुख्य अतिथी) द्वारा उक्त संकलन का विमोचन ह्र्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ,उसकी अपनी काव्य रचनाओं की प्रस्तुति एवं गायन के साथ.
    शुभि का काव्य रचना प्रक्रिया अभी भी सतत जारी है....

    इति शुभम
    श्रीमति.शकुंतला सक्सेना
    (शुभि की दादी माँ)

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  4. ...सुन्दर ......बहुत बढ़िया लगा...धन्यवाद

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  5. AAPKO AISE AVSAR BAR-BAR MILE. UDAY TAMHANEY.

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  6. कविताएं तो बहुत ही मज़ेदार हैं। काश दुनिया ऐसी होती कि सभी कवितायें ऐसी टिकाऊ मुस्कुराहट दे पातीं ...

    तीन सप्ताह लेट ही सही, नन्हीं कवयित्री को जन्मदिन की बधाई!

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...