Wednesday, May 13, 2009

राजेश उत्‍साही की दो और ग़ज़लें

।।एक।।
कशमकश से जिन्‍दगी की न डर जाएं
जो मन को भली लगे वही डगर जाएं

गुजरना उम्र का है, बहना नदी का
डरना है क्‍या, बस धार में उतर जाएं

शूलों की चुभन हो, या फूलों की नाजुकी
अपना तो काम है कि नई सहर लाएं

तूफान में घिर गया है जिनका सफीना
कुछ पल कश्‍ती पे मेरी वो ठहर जाएं

रुकी रुकी-सी क्‍यों हो मोड़ पर तमन्‍नाओ
मान भी जाओ इस मुकाम से गुजर जाएं

अक्‍स का है क्‍या,माटी का है यह पुतला
कहो तो राख बनके फिजां में बिखर जाएं


बाजार में बैठे हो तो खरीदार भी मिलेंगे
जिन्‍हें लुटने का है डर, वो अपने घर जाएं

इल्‍जाम अगर सिर है,चुप नहीं मुनासिब
चाहे जां रहे सलामत या कि मर जाएं

थामे रहिए उत्‍साही हौसले का दामन
जाने कौन से पल प्‍यार से संवर जाएं
*राजेश उत्‍साही

।। दो।।


पुण्‍य बहुत किए हैं,चंद पाप कर लें
कुछ सजाए काबिल कुछ माफ कर लें


निम्‍न दर्जे के हैं हम फकत आदमी
भले मानस की छवि मन से साफ कर लें


कर लीं सबने बहुत दुआएं मेरे वास्‍ते
बरबादी के लिए अब हवन-जाप कर लें

सीने पर हैं कई कसीदे, तमगे टंगे हुए
वक्‍त का तकाजा, आलोचना आप कर लें


मुमकिन नहीं है,हर वक्‍त रहें आदरणीय
है अगर वरदान तो इसी क्षण शाप कर लें


नज़रों में बहुत ऊपर रहा हूं श्रीमान की
अब कदमों में ही कहीं मेरा ग्राफ कर लें


वक्‍त के आने तक सूख न जाएं आंसू
मेरे नाम पर भी दो क्षण विलाप कर लें

बिगड़ेंगे ये संबंध तो जाने कब सुधरें
छोड़ें गिले-शिकवे,भरत-मिलाप कर लें

मुदृदत से, कुछ बात नहीं की आपने
इसी बहाने उत्‍साही से संलाप कर लें
*राजेश उत्‍साही

4 comments:

  1. उत्साही जी
    सुन्दर गजलें हैं

    अक्‍स का है क्‍या,माटी का है यह पुतला
    कहो तो राख बनके फिजां में बिखर जाएं
    और
    बिगड़ेंगे ये संबंध तो जाने कब सुधरें
    छोड़ें गिले-शिकवे,भरत-मिलाप कर लें
    ये शेर अच्छे बन पड़े हैं
    - विजय

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  2. सीने पर हैं कई कसीदे, तमगे टंगे हुए
    वक्‍त का तकाजा, आलोचना आप कर लें


    -बहुत बढ़िया..दोनों ही गज़लें.

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  3. Dost ,
    aapka gajlen ....
    bataane ke liye shabd hi nhi hai.bas jikarta hai,laharo pe utar jaye.
    Thankyou

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  4. WAH ! RAJESH JI, NET KE BAHAANE SNLAAP KARLE. @ UDAY TAMHANEY. BHOPAL.

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