साल 2000 के अक्टूबर के दिन थे। एकलव्य का कार्यालय अरेरा कालोनी के ई-1/25 में था। शाम के साढ़े सात बजे रहे थे। बाकी सब लोग जा चुके थे। मैं रोज की तरह अपने काम में व्यस्त था। मैंने अपने कमरे के दरवाजे पर एक मधुर और विनम्र आवाज सुनी,’क्या हम अंदर आ सकते हैं।‘ मैंने देखा एक उम्रदराज पुरूष और महिला वहां खड़े हैं। मैंने कहा आइए और अभिवादन के साथ उन्हें बैठने का इशारा किया।
औपचारिक बातचीत के बाद उन्होंने आने का मकसद बताया। वे थे प्रेम सक्सेना और उनकी पत्नी श्रीमती शंकुलता सक्सेना। प्रेमजी बीएचईएल से सेवानिवृत हैं और शंकुतला जी कार्मेल कान्वेट स्कूल में अध्यापिका थीं। अब वे भी सेवानिवृत हो गई हैं।